विषय-15 संविधान का निर्माण (एक नए युग की शुरू आत
स्मरणीय बिन्दु :
1. भारतीय संविधान 26 जनवरी, 1950 को अस्तित्व में आया इसके निर्माण से पहले के साल काफी उथल-पुथल वाले थे। यह महान आशाओं का क्षण भी था और भीषण मोहभंग का भी। लोगों की स्मृति में भारत छोड़ो आन्दोलन, आजादी हिन्द फौज का प्रयास, 1946 में रॉयल इंडियन नेवी का विद्रोह, देश के विभिन्न भागों में मजदूरों और किसानों के आन्दोलन आशाओं के प्रतीक थे तो वही हिन्दू-मुस्लिम के बीच दंगे और देश का बंटवारा भीषण मोहभंग का क्षण था
2. हमारे संविधान ने अतीत और वर्तमान के घावों पर मरहम लगाने, और विभिन्न वर्गो, जातियों व समुदायों में बँटे भारतीयों को एक साझा राजनीतिक प्रयोग में शामिल करने में मदद दी है।
3. भारतीय संविधान को 9 दिसम्बर, 1946 से 28 नवम्बर 1949 के बीच सूत्रबद्ध किया गया। । संविधान सभा के कुल 11 सत्र हुए जिनमें 165 दिन बैठकों में गए।
संविधान सभा में हुई चर्चाएँ जनमत से प्रभावित होती थी। सभा में होने वाली बहस विभिन्न अखबारों में छपती थी और तमाम प्रस्तावों पर सार्वजनिक रूप से बहस चलती थी। इस तरह प्रेस में होने वाली आलोचना और जवाबी आलोचना से किसी मुद्दे पर बनने वाली सहमति या असहमति पर गहरा असर पड़ता था। सामूहिक सहभागिता बनाने के लिए जनता के सुझाव भी आमंत्रित किए जाते थे
5. मुस्लिम लीग ने संविधान सभा की शुरूआती बैठको (यानी 15 अगस्त, 1947 से पहले) का बहिष्कार किया जिसके कारण उस दौर में संविधान सभा एक ही पार्टी का समूह बनकर रह गई थी। सभा के 82 प्रतिशत सदस्य कांग्रेस के थे।
6. संविधान सभा में कुल तीन सौ सदस्य थे जिनमें छः सदस्यों की भूमिका काफी महत्वपूर्ण थी। इन छ: में से तीन जवाहर लाल नेहरू, वल्लभ भाई पटेल और राजेन्द्र प्रसाद कांग्रेस के सदस्य थे। इसके अतिरिक्त विधिवेत्ता बी. आर. अम्बेडकर, के.एम. मुशी और अल्लादी कृष्णास्वामी अय्यर थे।
7. संविधान सभा में दो प्रशासनिक अधिकारी भी थे। इनमें से एक बी.एन. राव भारत सरकार के संवैधानिक सलाहकार थे जबकि दूसरे अधिकारी एस.एन. मुखर्जी थे। इनकी भूमिका मुख्य योजनाकार की थी।
8. संविधान सभा का प्रारूप बनाने में कुल मिलाकर 3 वर्ष (2 वर्ष, 11 महीने, 18 दिन) लगे और इस दौरान हुई चर्चाओं के मुद्रित रिकार्ड 11 बड़े खंडों में प्रकाशित हुए।
9. . 13 दिसम्बर, 1946 को जवाहर लाल नेहरू ने संविधान सभा के सामने "उद्देश्य किया। इसमें भारत को "स्वतंत्र, सम्प्रभु गणराज्य' घोषित किया गया था नागरिकों को न्याय समानता व स्वतंत्रता का आश्वासन दिया गया था और यह वचन दिया गया था कि पर्याप्त रक्षात्मक प्रावधान किए जाएंगे।
प्रस्ताव पेश
10. पं. नेहरू ने कहा कि हमारे लोकतंत्र की रूपरेखा हमारे बीच होने वाली चर्चा से ही उभरेगी। भारतीय संविधान के आदर्श और प्रावधान कहीं और से उठाए गए नहीं हो सकते ।
11. संविधान सभा उन लोगों की आकांक्षाओं की अभिव्यक्ति का साधन मानी जा रही थी। जिन्होंने स्वतंत्रता आंदोलनों में हिस्सा लिया था। लोकतंत्र, न्याय, समानता भारत में सामाजिक संघर्षों के साथ गहरे तौर पर जुड़ चुके थे। जब 19वीं शताब्दी में समाज सुधारकों ने बाल-विवाह का विरोध किया तथा विधवा विवाह का समर्थन किया तब वे सामाजिक न्याय वे की अलख जगा रहे थे, उसी प्रकार स्वामी विवेकानंद ने हिंदू धर्म में सुधार की मुहिम चलाई तो, ज्योतिबा फूले ने दलित जातियों का बीड़ा उठाया।
12 सविंधान सभा उन लोगों की आकांक्षाओं की अभिव्यक्ति का साधन मानी जा रही थी जिन्होनें स्वतंत्रता आन्दोलन में हिस्सा लिया था। लोकतंत्र, न्याय समानता भारत में सामाजिक संघर्षों के साथ गहरे तौर पर जुड चुके थे
13. संविधान सभा में पृथक निर्वाचिका की समस्या पर बहस हुई | मद्रास के बी. पोकर बहादुर ने इसका पक्ष लिया परंतु, ज्यादातर राष्ट्रवादी नेताओ जैसे- आर.वी. धुलेकर, सरकार पटेल, गोविन्द वल्लभ पंत, बेगम ऐजाज रसूल आदि ने इसका कड़ा विरोध किया और इसे देश के लिए घातक बताया।
14. संविधान सभा में एन.जी. रंगा तथा जयपाल सिंह ने आदिवासियों की समस्याओं की ओर ध्यान आकर्षित किया। उन्हें आम आदमी के स्तर पर लाने और सुरक्षा प्रदान करने की जोरदार वकालत की।
15. एन.जी. रंगा ने कहा 'अल्पसंख्यक' शब्द की व्याख्या आर्थिक स्तर पर की जानी चाहिए । रंगा की नजर में असली अल्पसंख्यक गरीब और दबे कुचले लोग थे।
16. राष्ट्रीय आंदोलन के दौरान अम्बेडकर ने दलित जातियों के लिए पृथक निर्वाचिकाओं की माँग की थी जिसका गाँधी जी ने यह कहते हुए, विरोध किया था कि ऐसा करने से ये समुदाय स्थायी रूप से शेष समाज से कट जाएंगे।
17. संविधान सभा में केन्द्र और राज्य सरकार के अधिकारों को लेकर हुई बहस में अधिकतर सदस्यों ने मजबूत केन्द्र का ही पक्ष लिया और विषयों की तीन सूचियाँ बनाई गई-केन्द्रीय सूची, राज्य सूची और समवर्ती सूची। -
18. राष्ट्रभाषा के सवाल पर संविधान सभा की भाषा समिति ने यह सुझाव दिया कि देवनागरी लिपि में लिखी हिन्दी भारत की राजकीय भाषा होगी। हिन्दी को राष्ट्रभाषा बनाने के लिए हमें धीरे-धीरे आगे बढ़ना चाहिए।
19. सविंधान सभा में अल्पसंख्यकों के मुद्दों पर बहस हुई। दलित जातियों के अधिकारों तथा महिलाओं के अधिकारों पर भी चर्चा हुई।
20 संविधान सभा में दमित जातियों के लिए पृथक निर्वाचिका के पक्ष और विपक्ष में हुई बहसों के नतीजन और संप्रादयिक हिंसा को देखते हुए अम्बेडकर ने पृथक निर्वाचिका की मांग को छोड़ दिया।
21 राष्ट्रभाषा हिन्दी को लेकर बहुत अधिक बहस हुई तथा यह तय हुआ कि परस्पर समायोजन होना चाहिए
22 आर वी धुलेकर जी हिन्दी के राष्ट्रभाषा बनाने के प्रबल पक्षधर थे।
23 केवल दो बातों पर ही आम सहमति थी, वे थे-व्यस्क मताधिकार तथा धर्मनिरपेक्षता जो संविधान के केन्द्रीय अभिलक्षण हैं।
24 संविधान सभा में हुई चर्चाएं हमेशा जनमत से प्रभावित होती थी इसके लिए अखबार रेडियों तथा प्रचार का सहारा लिया गया।
25 संविधान की विशेषताएँ-लिखित व लचीला संविधान, केन्द्र व राज्य शक्ति विभाजन स्वतंत्र न्यायपालिका, धर्मनिरपेक्षता, संसदीय प्रणाली, शाक्तिशाली केन्द्र, व्यस्क मताधिकार तथा मौलिक अधिकार एवं मौलिक कर्तव्य आदि। -